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क्या है मनुष्य का वास्तविक स्वरूप एवं कर्तव्य ,

मनुष्य अपनी इच्छा से कुछ भी नहीं करता माया के वशीभूत सही निर्णय नहीं ले पाता

परंतु विवेकशील पुरुष संकीर्णता से ऊपर उठकर सर्व साधारण कल्याणार्थ अपनी स्वयं की कामनाओं के साथ साथ सार्वभौम हित प्रयास में रहता हैं क्योंकि सब की भले में ही अपना भला छुपा होता है यदि हम उच्च गुणवत्ता वाली सोच और उच्च धरातल पर कार्यरत रहते है वसुदेवकुटुंब की भावना में परिणित होने पर मनुष्य का अवचेतन मन इतना सुदृढ़ हो जाता है कि उसके संकल्प विकल्प सभी सार्थक होते हैं किसी भी क्षेत्र में सक्रिय रहकर हम वो कार्य कर सकते है जिसके लिए ईश्वर के संकल्प द्वारा हम सभी को इस पृथ्वीलोक पर भेजा गया अपना कार्य पूर्ण करने जिस प्रकार इस धरा धाम पर वो अदृश्य शक्ति विभिन्न रूपों में अवतीर्ण होती हैं उसी प्रकार हम सब संकल्प से यहां आते है परंतु अपने वास्तविक स्वरूप और प्रमुखता को विस्मरण कर अहंकार एवं स्वार्थ की अधिकता वस अपने कर्तव्य से पलायन हो कर विभिन्न व्यर्थ की चेष्टाएं के हेतु समय तो नष्ट करते ही है साथ ही हर प्राणी के हृदय में विराजमान उस आत्मरूपी परमात्मा का भी घोर अपमान कर देते है जो हमारे कष्टों के कारण बनता है, जय हिंद

 

बलदेव चौधरी

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